मैंने यह लेख मानव समाज के अंतर्गत संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा की सतनाम धर्म के अनुयाई सतनामी समाज के प्रबुद्ध जनों के सोचने समझने, निर्णय लेने के उद्देश्य से लिख रहा हूं |
जो सतनामी होंगे और जिनकी रगों में सतनामी का लहू दौड़ रहा होगा तथा सतनाम धर्म की राह पर चलने वाले बंदे होंगे तो उन्हें इस लेख में उल्लेखित तथ्यों पर गंभीरता से विचार करना ही होगा |
भारतीय इतिहास के 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एक एक अभूतपूर्व प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व लेकर छत्तीसगढ़ के इस विशाल भूभाग में महामानव | महामानव युग पुरुष संत बाबा गुरु घासीदास अवतरित हुए वे अपने युग के सजग प्रहरी थे। अंधविश्वास , एवं संकीर्ण मनोविज्ञान से भरी भूमि से समाज को ऊपर उठाने का आजीवन प्रयास किया। हिंदु समाज के मनु वादियों और उनके आडंबरओ पर निर्मम प्रहार किया। महाकौशल छत्तीसगढ़ की विशाल धरती पर गुरु घासीदास प्रथम व एक-मेव मनीषी हैं, जिन्होंने मानव द्वारा बनाए गए तथाकथित जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था के उत्पीड़न के प्रति समाज को सजग बनाया। संत बाबा गुरु घासीदास ने सभी संप्रदायों में व्याप्त जड़ता का घोर विरोध किया, जो तर्क मूलक था । और इन्हीं आडंबर प्रधान संप्रदायों के विरोध में ही बाबा गुरु घासीदास ने सहज धर्म “ सतनाम धर्म ” को ही ससम्मान प्रतिष्ठापित किया।
एक अंग्रेज लेखक B.G brigs के अनुसार बाबा गुरु घासीदास का “सतनाम आंदोलन” सन 1820 से1830 के बीच इतना विकराल था कि इस आंदोलन में लाखों मानव समाज प्रभावित होकर सतनाम धर्म में शामिल हुए।कालांतर में यही मानव समूह सतनामी कहलाए और बाबा घासीदास बाबा “गुरु” घासीदास के रूप में प्रतिष्ठापित हुए।
इस छत्तीसगढ़ के विशाल भूखंड की विडंबना यह रही है कि इतने बड़े युगपुरुष व मनीषी यहां अवतरित हुए,इतना बड़ा महान कार्य को प्रतिपादित किया, परंतु किसी लेखक, साहित्यकार अथवा कवि ने अपनी लेखनी नहीं चलाई, आश्चर्य की बात है, जबकि बाबा गुरु घासीदास के बाद पैदा होने साधारण,व्यक्तित्व वाले राजनीतिक अथवा सामान्य लोगों के विषय में बहुत कुछ कहा गया है तथा उस पर शोध का कार्य विश्वविद्यालयों में चल रहा है। जो व्यक्ति बाहर से आए अपने प्रपंच भरे काम का राजनीतिक जाल बिछाया, उन्हें छत्तीसगढ़ की धरती पर महिमामंडित किया गया।यह बहुत ही दुख का विषय है । साहित्यकारों लेखकों एवं कवियों की लेखनी आज तक चुप रहने पर संदेह पैदा होता है- कि क्या बाबा गुरु घासीदास के अनवरीत चलने वाला विशाल “सतनाम आंदोलन” से विभिन्न संप्रदायों के मठाधीश, पंडा पुजारियों को इतना भय हो चुका था कि समस्त मानव समूह “सतनाम धर्म” में शामिल हो जाएंगे? और मठाधीश पुजारियों का प्रपंच समाप्त हो जाएगा।
24 जून सन1979 पंडरीतराई नामक गांव में सतनाम सेवा संघ कार्यालय के उद्घाटन के समारोह में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था उस समय पंडित रवी शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति विशेष अतिथि के तौर पर आए हुए थे । इस समारोह में सतनाम सेवा संघ के द्वारा मांग रखी गई कि बाबा गुरु घासीदास के सतनाम धर्म केशोध हेतु “शोध प्रकोष्ठ “ खोला जाए। इस मांग को तत्कालीन कुलपति द्वारा स्वीकारने के पश्चात सतनाम धर्म पर लिखने की स्पर्धा से आ गई ।
परंतु आश्चर्य की बात यह है कि इतने बड़े सास्वत “सतनाम धर्म” के विषय में लेखको ने नानी या दादी मां की कहानी की तरह बिना तथ्य के तथ्य हिन बातों का संकलन कर अपनी अपनी लेखों में गुमराह भरे लेख लिखने लगे। गैर सतनामी लेखकों ने तो हद की सीमा पार कर गए। इन लेखकों ने गुरु घासीदास के जीवन, सतनाम धर्म के नियमों तथा सामाजिक इतिहास मे झूठी बातों को सम्मिलित करके दिशाहीन करने की कोशिश अपने पंडितपूर्ण वाक्य द्वारा किया गया है। और जाहिर सी बात है यह गैर सतनामी थे इसी कारण इनके लेख को बहुत प्रतिष्ठा मिला यहां तक कि इन्हीं के लेखों को आधार मानकर सरकारी राजपत्र में भी गलत कहानियों को स्थान दिया गया है । इतना ही नहीं अन्य समाज व जाति के परंपराओं को सतनामी समाज की परंपरा बनाने की चेष्टा की है। जैसे..
- गुरु घासीदास वंशावली- गुरु घासीदास, संघर्ष, समन्वय और सिद्धांत1756 से1850, ( डॉ.हीरालाल शुक्लमध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल)।
- सोहद्रा की आत्मकथा-( डॉ. श्याम सुंदर त्रिपाठी) पेज नंबर23-24।
- गुरु घासीदास को संन्यास की प्रेरणा- लेखक डॉ .श्याम सुंदर त्रिपाठी पेज नंबर 19
- एक ही गोत्र में विवाह- लेखक श्रीलाल शुक्ल पेज नंबर 203। यह सभी लेख बातें या घटनाएं जो अलग-अलग पुस्तकों में लिखा गया है, ये सतनामी संस्कृति के सदा विपरीत है तथा इन्हें सतनामी समाज पर जबरन लादा गया है।ऐसे लेखकों कवियों और साहित्यकारों पर तरस आता है कि कहीं ये नशे की हालत में तो नहीं लिखे हैं आज जो सतनामीयों में कुछ जागृति आई है, इस और कुछ बुद्धिजीवियों का ध्यान आकर्षित हुआ, विशेषकर जब बिलासपुर में “गुरु घासीदास” विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। परंतु आश्चर्य का विषय यह है कि इस विश्वविद्यालय में गुरु घासीदास पर शोध खंड प्रकोष्ठ नहीं बनाया गया, नहीं किसी स्टूडेंट छात्र छात्राओं को बाबा गुरु घासीदास के सतनाम धर्म व संस्कृति पर शोध का कार्यभार सौंपा गया है। हे साथियों हमें बाबाजी के सत मार्गों पर फुल बिछाना हमारा नैतिक कर्तव्य है। इसलिए आइए हम पशुता का त्याग कर कर मानवता को धारण कर सतनाम हित मे अपना सार्थक कदम बढ़ावे और गुरु जी के लोक मंगलकारी सत उपदेश को जन जन तक पहुंचाते हुए समाज में नव जागृति लाने के प्रयास में एक हो जाए | उच -नीच और स्वार्थ की भावना से परे एक ऐसा पंत बनाएं जो सभ्य समाज का निर्माण करें जिसमें ज्ञान, शिक्षा, सद्भाव, समभाव एवं आपस में भाईचारे की भावनाओं का समावेश हो| परम आदरणीय पाठकों एवं मेरे सतनामी भाइयों बहनों। मैंने इस लेख में सतनाम धर्म के अनुरूप अपने विचारों का उल्लेख किया है मेरे विचारों में कोई त्रुटि पाई जाती है तो मुझे अपना मानकर क्षमा प्रदान करेंगे और साथ ही अपने विचारों को कमेंट के जरिए मुझ से अवगत भी करवाएंगे।मैं आगे इस कड़ी में सतनामी तथा सतनामीयों के इतिहास के बारे में रोचक लेख लिखने जा रहा हूं| तो कृपया आप सभी से अनुरोध है कि अपना सहयोग दें और मेरे अगले पोस्ट का इंतजार करें| साहे..ब सतनाम !
3 comments:
kya bat hai bhai.lge rho aapki is jankari ke liye tahe dil se dhanywad saheb satnam
Thanx sir Jai Satnam
Ye bat satya hai ki hamare purkhe narnoul se chhattisgrha me aa ke bas gaye...
Saheb Jay Satname.
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